Tuesday, November 9, 2010

राहों का अंत

रात से हार कर चला था मैं
सोचा था राहों में रोशनी तो होगी
धुंधला सा कहीं सवेरा मिलेगा
कोई किरन बादलों से उभरी तो होगी

सब राहों का अंत हो गया
अब तक गुम वो सवेरा है
सोचा था राहों में रोशनी तो होगी
और यहां मंज़िल पर भी अंधेरा है

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